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इंटरनेट टिप्स तथा ट्रिक्स

नेटफ्लिक्स-अमेजन की फिल्मों और वेब सीरीज की पाइरेसी:रिलीज के चंद घंटों के अंदर फ्री में मिल रहीं, लेकिन आपका पर्सनल डाटा चोरी होने का खतरा

गूगल प्ले स्टोर पर मौजूद पिकशो, मोमिक्स, पॉपकॉर्न फ्लिक्स जैसे ऐप नेटफ्लिक्स और अमेजन जैसे OTT प्लेटफॉर्म के ओरिजिनल कंटेंट चोरी कर रहे हैं और उन्हें ग्राहकों को फ्री में दिखा रहे हैं। देश के बड़े-बड़े OTT प्लेटफॉर्म पर शो के लॉन्च होने के कुछ ही घंटों के अंदर पूरा शो इन पाइरेटेड ऐप्स पर आ जाता है। वॉट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से भी इन ऐप्स को बूस्ट मिलता है।

इतना ही नहीं, प्ले स्टोर पर मौजूद ये ऐप कई दूसरे देशों से चलाए जा रहे हैं। यहां तक कि साइबर सेल को भी इसकी जानकारी है, लेकिन ये पहुंच से दूर हैं। हालांकि, फ्री में लेटेस्ट फिल्में या वेबसीरीज देखने के लालच में यूजर्स खतरा उठाने से भी नहीं चूक रहे। इससे सबसे बड़ा खतरा मोबाइल में सेव्ड पर्सनल डेटा की सेंधमारी का है।

दैनिक भास्कर ने अपने इन्वेस्टिगेशन में पाया कि गैरकानूनी ढंग से संचालित इन ऐप्स या प्लेटफॉर्म पर सिर्फ क्रिकेट ही नहीं टेलीविजन, बॉलीवुड, हॉलीवुड और रेडियो के लगभग सभी प्रीमियम कंटेंट मौजूद हैं। आप भी पढ़िए हमारी खास पड़ताल…

वो ऐप्स, जहां मिलता है पाइरेसी का माल
मौजूदा समय में पिकशो, मोमिक्स, पॉपकॉर्न फ्लिक्स, मोबड्रो, कोडी, पॉपकॉर्न टाइम, मूवी HD, थोप टीवी, फ्लिक्स प्ले, T टीवी, मिस्टर टीवी, मूवी बॉक्स, एचडी सिनेमा और ऐसे ही कई और ऐप है जो मार्केट में पिछले 2 से 3 साल से धड़ल्ले से वीडियो और लाइव टीवी के प्रीमियम कंटेंट चोरी कर बेच रहे हैं।

कार्रवाई की बात करें तो इनमें से केवल THOP TV के संचालक और उसके एक साथी को अब तक मुंबई पुलिस अरेस्ट कर पाई है। इसके अलावा तमिलरॉकर्स, तमिलमाव, तमिल ब्लास्टर्स नाम की वेबसाइट और पिकशो ऐप के खिलाफ डिज्नी हॉटस्टार ने चेन्नई में एक केस दर्ज करवाया है।

कुछ पॉपुलर पाइरेटेड ऐप्स चार्ज भी वसूल रहे
जिन ऐप्स के लिए आप महीने में तकरीबन 1500 रुपए खर्च करते हैं, उन्हें ये पिछले 2-3 साल से खुलेआम लगभग फ्री में उपलब्ध करवा रहे हैं। खास यह है कि इन ऐप्स का सब्सक्राइबर बेस भी कुछ ओरिजिनल OTT प्लेटफॉर्म से ज्यादा है। इसका फायदा उठाते हुए कुछ ने चोरी किए हुए कंटेंट को दिखाने के लिए पैसे लेना शुरू कर दिया है। हमारी इन्वेस्टिगेशन में यह सामने आया है कि ये महीने में तकरीबन 30 से 50 रुपए में ‘चोरी का माल’ बेच रहे हैं।

गूगल-फेसबुक भी दे रहे बढ़ावा
पुणे साइबर सेल के DCP संभाजी कदम ने बताया कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती बाहर से संचालित होने वाले ऐप्स को लेकर है। इन ऐप्स की जानकारी होने के बावजूद हम उन्हें ब्लॉक नहीं कर सकते हैं। हम कई बार गूगल, फेसबुक और ट्विटर को इसकी जानकारी देते हैं, लेकिन उनकी ओर से लगभग हमेशा देर से या कभी-कभी रिस्पॉन्स ही नहीं आता है। इस पर कानून मौजूद है और समय-समय पर हम कार्रवाई करते रहते हैं। आज भी सिर्फ एक क्लिक में हम इन ऐप्स को गूगल, फेसबुक, टेलीग्राम और अन्य सर्च प्लेटफॉर्म पर खोज सकते हैं।

पाइरेसी में अमेरिका -रूस के बाद भारत
साइबर सुरक्षा और क्लाउड सर्विस कंपनी ‘अकामाई टेक्नोलॉजीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत ने पाइरेटेड ऐप और वेबसाइट्स तक पहुंचने में दुनिया में तीसरा स्थान हासिल किया। भारत में पाइरेटेड वेबसाइट्स पर 6.5 अरब विज़िट दर्ज की गईं, जो अमेरिका (13.5 बिलियन) और रूस (7.2 बिलियन) के बाद तीसरी सबसे ज्यादा है।

पाइरेटेड ऐप से टेरर फंडिंग का अंदेशा
एक रिपोर्ट के मुताबिक, वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विसेज देने वाले इंडियन OTT प्लेटफॉर्म को हर साल 30%-35% रेवेन्यू का नुकसान हो रहा है। सुरक्षा एजेंसीज को इस बात का संदेह है कि इन पैसों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ यानी टेरर फंडिंग के लिए भी किया जा सकता है। 1993 ब्लास्ट का आरोपी दाऊद इब्राहिम भी कई सालों तक फिल्मों की पाइरेसी करता रहा है। सूत्रों के मुताबिक दाऊद गैंग से जुड़े लोग OTT कंटेंट की पाइरेसी से जुड़ गए हैं और हर साल हजारों करोड़ रुपए जमा कर रहे हैं।

साइबर क्रिमिनल को पकड़ना मुश्किल क्यों?
महाराष्ट्र साइबर क्राइम सेल के DCP संजय शिंत्रे ने बताया, ‘THOP टीवी के दो संचालकों को हमने पकड़ लिया है और जल्द ही इस मामले में चार्जशीट दायर करने वाले हैं।’ आरोपियों तक पहुंचने के तरीके का खुलासा नहीं करते हुए DCP ने कहा, ‘साइबर क्रिमिनल्स हमेशा कुछ फुटप्रिंट छोड़ देते हैं, उन्हें पकड़ना कभी-कभी मुश्किल होता है, लेकिन असंभव नहीं है।

अगर वे ऐप भारत से संचालित हो रहे हैं तो वे जल्द हमारी गिरफ्त में आ जाते हैं, लेकिन बाहर से संचालित ऐप के लिए हमें यह देखना होता है कि उस देश से हमारी संधि है या नहीं। जिन देशों से ट्रीटी नहीं होती है उन देशों में जाकर क्रिमिनल को गिरफ्तार करने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन वह सलाखों के पीछे जरूर पहुंचता है।’

कंप्लेंट का वेट कर रही है मुंबई पुलिस
DCP संजय ने कहा कि कुछ ऐप के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं, लेकिन वे महाराष्ट्र से बाहर दर्ज हैं। महाराष्ट्र साइबर सेल किसी भी साइबर क्राइम को डीकोड करने में सक्षम है, लेकिन बस हमारे पास शिकायत आनी चाहिए। जब तक हमारे पास कोई शिकायत लेकर नहीं आता है, हम उस पर कार्रवाई नहीं कर सकते हैं।

विदेशों से संचालित ऐप्स पर कार्रवाई बहुत ही मुश्किल: लॉ एक्सपर्ट
लॉ फर्म ‘अक्षय कश्यप’ के चीफ एडवोकेट अक्षय ने बताया कि ऐप पाइरेसी को लेकर हमारे देश में कड़ा कानून मौजूद है, लेकिन ऐप के स्क्रिप्ट (कोड) में थोड़ा सा बदलाव करके पाइरेटेड ऐप बनाने वाले आसानी से बच निकलते हैं। हालांकि, वीडियो पाइरेसी में सजा और जुर्माने का कड़ा प्रावधान है।

अगर कोई वीडियो या लाइव कंटेंट की पाइरेसी करता है तो उसे सजा तय है, बशर्ते वह पकड़ा जा सके। सबसे ज्यादा दिक्कत उन ऐप्स को बंद करवाने की है जो भारत की जगह विदेश से संचालित हो रहे हैं। इन ऐप्स को बंद करवाना लगभग असंभव है।

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